कबीर दास का जीवन परिचय, जीवनी, जन्म, शिक्षा, परिवार, पत्नी, दोहे, रचनाएं, मृत्यु, जयंती, कविताएं, परंपरा, इतिहास, धर्म, विचार (Kabir Das Biography in Hindi, Wiki, Family, Education, Dohe, Pomes, Religion, Motivational Quotes, Jayanti, Motivational stories, Death, Death Resion, Language, Philosophy)
दोस्तों आज के अपने लेख में हम एक महान और सुप्रसिद्ध कवि कबीर दास जी के बारे में जानने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी सकारात्मक विचारों और अपनी कला शैली से अनेक प्रकार की कृतियां लिखी है।
इसके साथ ही कबीर दास जी ने कभी भी जाति, धर्म, ऊंच-नीच, भेदभाव जैसी चीजों को मान्यता नहीं दी वह हमेशा से समाज से इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास करने में लगे रहे।
क्योंकि कबीरदास जी यह जानते थे कि यह सब समस्याएं समाज की सबसे बड़ी समस्या में से हैं जो समाज को अंदर से खोखला बनाकर उसे नष्ट करती जा रही हैं।
इसके साथ ही कबीरदास सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए प्रेरणादायक कविताएं जब भी उनकी कविताएं पढ़ी जाती है तो वह मन और आत्मा को छू जाती हैं और और लोगों को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
तो दोस्तों आज के अपने लेख कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Biography In Hindi) में हम आप को उनके बारे में बहुत सी जानकारियां देंगे तो आइए जानते हैं उनके बारे में-
कबीर दास का जीवन परिचय
नाम (Name) | कबीर दास |
जन्म (Date Of Birth) | 1438 ईस्वी |
जन्म स्थान (Birth Place) | काशी (वाराणसी) |
नागरिकता (Nationality) | भारतीय |
पेशा (Profession) | कवि, संत |
प्रसिद्ध (Famous For) | एक समाज सुधारक, कवि और संत के रूप में |
प्रमुख रचनाएं (Creations) | साखी, सबद, रमैनी |
उम्र (Age) | 120 वर्ष (मृत्यु के समय-विवादास्पद) |
गुरु (Teacher) | रामानंद |
शैक्षणिक योग्यता (Education) | ज्ञात नहीं |
भाषा (Language) | साधुक्कड़ी (मूल भाषा) ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, अवधि-साहित्यिक भाषा |
जाति (Cast) | जुलाहा |
मृत्यु (Death Date) | 1518 ईसवी |
मृत्यु का कारण (Death Resion) | विवादास्पद |
मृत्यु का स्थान (Death Place) | मगहर, उत्तर प्रदेश |
कबीरदास कौन है? (Who Is Kabir Das?)
कबीरदास 15वीं शताब्दी के एक भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे और उन्होंने अपने लेखन ने उन्हें हिंदू धर्म के भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया और उनके छंद शिखा धर्म के गुरु ग्रंथ साहिब और संत गरीब दास के सतगुरु ग्रंथ साहिब और कबीर सागर में पाए जाते हैं।
कबीरदास का जन्म एवं शुरुआती जीवन-
भारत के महान संत कबीरदास का जन्म 1440 ईस्वी में हुआ था और उन्हें कबीरपंथी के रूप में जाना जाता है जिन्होंने पूरे उत्तर और मध्य भारत में विस्तार किया उनकी वीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, जैसी महान रचना है लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा ए प्रदान करती है।
उनका पालन पोषण एक बहुत ही गरीब मुस्लिम बुनकर परिवार में हुआ था वह बहुत ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे और एक महान साधु बने उन्होंने अपनी प्रभावशाली परंपराओं और संस्कृति के कारण पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त की है।
दोस्तों कबीर दास जी के जन्म के माता-पिता का कोई खास सुराग नहीं है क्योंकि उनका पालन पोषण नीरू और नीमा नाम के दंपति ने वाराणसी के एक छोटे से शहर लहरतारा में किया है।
नीरू और नीमा एक बेहद ही गरीब और अशिक्षित थे लेकिन उन्होंने दिल से छोटे से बच्चे को गोद लिया और उसे अपने व्यवसाय के बारे में प्रशिक्षित किया फिर भी कबीर दास जी ने एक साधारण और फकीर का संतुलित जीवन व्यतीत किया है।
कबीर दास की शिक्षा (Kabir Das Education)
दोस्तों कबीर दास जी का पालन पोषण बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था जहां पर शिक्षा के बारे में ना तो सोचा जा सकता था और ना ही यह संभव था उस दौरान रामानंद जी काशी के एक प्रसिद्ध विद्वान और पंडित थे और कभी उदास हो हमसे शिक्षा ग्रहण करना चाहते थे इसीलिए उन्होंने कई बार उनके आश्रम में जाने और उनसे मिलने की विनती की परंतु उन्हें हर बार भगा दिया जाता था और क्योंकि उस समय जात पात का भी काफी चलन था ऊपर से काशी में पंडितों का ही राज रहता था।
कबीरदास के जन्म से जुड़ी कहानी
वैसे तो दोस्तों कबीरदास के जन्म के संबंध में लोगों द्वारा अनेक प्रकार की कहानियां कही जाती हैं और कुछ लोगों का ऐसा भी कहना है कि वह जगत गुरु रामानंद स्वामी जी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे और उसे ब्राह्मणी ने नवजात शिशु को एक तालाब के पास छोड़ दिया था।
उसी तालाब के पास है नीरू और नीमा नाम का एक दंपति रहता था और जब उन्होंने बच्चे की रोने की आवाज सुनी तो वह दौड़कर तालाब के किनारे गए और वहां से नवजात शिशु को उठाकर अपने घर ले आए।
घर लाने के बाद उन्होंने उस बालक का पालन पोषण बिल्कुल अपने पुत्र की तरह ही किया क्योंकि उनके कोई संतान नहीं थी इसके बाद उस बालक को कबीर के नाम से जाना जाने लगा।
इसके साथ ही दोस्तों कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वह जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानंद के प्रभाव से उन्हें हिंदू धर्म की बातें मालूम हुई।
इसके साथ ही कुछ कबीरपंथी यों का यह भी मानना है कि कबीर दास जी का जन्म काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ था और कबीर दास ने अपनी रचनाओं में भी काशी का नाम लिया है।
एक दिन जब कबीरदास सुबह के समय पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े तो उस समय रामानंद जी गंगा स्नान करने के लिए सीढ़ियों से उतर रहे थे और उनका पैर अचानक कबीरदास के शरीर पर पड़ गया और कबीर दास के मुख्य से तत्काल राम साधन निकल पड़ा उसी राम को कवि ने दीक्षा मंत्र मान लिया और रामानंद जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।
कबीरदास का परिवार (Kabir Das Family)
पिता का नाम (Father’s Name) | नीरू (किवदंती के अनुसार) |
माता का नाम (Mother’s Name) | नीमा (किवदंती के अनुसार) |
बहन का नाम (Sister’s Name) | कोई नहीं |
भाई का नाम (Brother’s Name) | कोई नहीं |
पत्नी का नाम (Wife’s Name) | लोई (विवादास्पद) |
बेटे का नाम (Son’s Name) | कमल (विवादास्पद) |
बेटी का नाम (Daughter’s Name) | कमली (विवादास्पद) |
कबीरदास का विवाह, पत्नी, बच्चे (Kabir Das Wife, Children)
दोस्तों कबीर दास के जीवन के अन्य पहलुओं की तरह ही उनके वैवाहिक जीवन का पहलू भी काफी उलझा हुआ है और इसमें भी लोगों की अलग-अलग मान्यताएं देखने को मिलती हैं।
जहां एक तरफ बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में कभी भी विवाह नहीं की तो वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग मानते हैं कि उन्होंने लोई नाम की एक महिला से विवाह किया था और उनके दो बच्चे हुए थे जिनमें एक बेटा कमल और एक बेटी कमली थी।
इसके साथ ही कुछ लोग से यह सुझाव भी प्राप्त होता है कि उन्होंने दो बार शादी की थी हालांकि किसी भी तथ्य को प्रमाणित करने के लिए किसी भी प्रकार के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं।
कबीरदास का धर्म (Kabir Das Religion)
कबीरदास के अनुसार जीवन जीने का सही तरीका ही उनका धर्म है वह धर्म से ना तो हिंदू है ना मुसलमान कबीर दास जी धार्मिक रीति-रिवाजों के एक बहुत बड़े निंदा कर रहे हैं।
कबीर दास ने धर्म के नाम पर चल रही को प्रथाओं का पूरे जीवन भर विरोध किया है और उनका जन्म सिख धर्म की स्थापना के समकालीन था इसी कारण उनका प्रभाव से कि धर्म में भी दिखाई देता है और उन्होंने अपने जीवन के काल में कई बार हिंदू और मुस्लिमों का विरोध भी झेला है।
कबीरदास और समाज (Kabir Das And Society)
कबीर दास जी के दोहे से पता चलता है कि जब जीवित थे तब उन्हें उनके विचारों के लिए समाज द्वारा बहुत सताया गया था। उत्पीड़न और बदनामी के प्रति कबीर की प्रतिक्रिया उनका स्वागत करना था उन्होंने निंदा करने वालों को मित्र कहां बदनामी के लिए आभार व्यक्त किया क्योंकि यह उसे अपने भगवान के करीब ले आया।
डेविड लोरेंनजेन के अनुसार कबीर के बारे में किवदंतिया सामाजिक भेदभाव और आर्थिक शोषण के खिलाफ विरोध को दर्शाती हैं वे गरीबों और शक्तिहीनो के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती हैं जो अमीर और शक्तिशाली नहीं है।
हालांकि कई विद्वानों का संदेह है कि उत्पीड़न की यह किवदंती या प्रमाणिक नहीं है क्योंकि ऐसे किसी भी सबूत प्राप्त नहीं हुए हैं और इस बात की संभावना ही नहीं है कि एक मुस्लिम सुल्तान हिंदू ब्राह्मणों से आदेश लेगा या कबीर की अपनी मां ने मांग की थी कि सुल्तान कबीर को दंडित करें विद्वान कबीर की कथाओं की ऐतिहासिकता पर इसी प्रकार से सवाल उठाते हैं।
कबीरदास जी का दर्शन (Kabir Das Philosophy)
कबीर दास जी का पूरा जीवन उनके दर्शन का प्रतिबिंब है उनका लेखन मुख्य रूप से पुनर जन्म और कर्म की अवधारणा पर आधारित था जीवन के बारे में कबीर का दर्शन बहुत ही स्पष्ट रहा है वह जीवन को बेहद सादगी से जीने में विश्वास रखते थे और ईश्वर की एकता की अवधारणा में उनका दृढ़ विश्वास था।
उनका मूल विचार यह संदेश फैलाना था कि चाहे आप हिंदू भगवान का नाम ले या मुस्लिम भगवान का तथ्य यह है कि केवल भगवान एक है जो इस खूबसूरत दुनिया का और इस दुनिया में मौजूद सभी के निर्माता हैं वही कबीर दास के दर्शन और सिद्धांतों की बात करें तो हिंदू समुदाय द्वारा थोपी गई जाति व्यवस्था के खिलाफ थे और मूर्तियों की पूजा करने के विचार का भरपूर विरोध करते थे।
इसके विपरीत उन्होंने आत्मान की वेदांतिक अवधारणाओं की वकालत भी की है उन्होंने न्यूनतम जीवन के विचार का समर्थन किया जिसकी सूफियों ने वकालत की थी संत कबीर के दर्शन के बारे में स्पष्ट विचार रखने के लिए उनकी कविताओं और दोनों में स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
कबीरदास पाखंड की प्रथा के सख्त खिलाफ थे और उन्होंने लोगों द्वारा बनाए गए दोहरे मापदंडों को अस्वीकार किया तथा हमेशा लोगों को दूसरे जीवो के प्रति दया भाव रखने और सच्चे प्यार का आभास करने का उपदेश दिया। उन्होंने मूल्यों और सिद्धांतों का पालन करने वाले अच्छे लोगों की संगति की आवश्यकता का आग्रह किया।
कबीर दास की प्रेरणादायक कहानियां (Kabir Das Stories)
वैसे तो दोस्तों संत कबीर दस से जुड़े कई ऐसे प्रसंग और प्रवचन आज भी लोकप्रिय हैं जिनमें सुखी और सफल जीवन के सूत्र बताए गए हैं अगर इन्हें अपने जीवन में अपना लिया जाए तो कई परेशानियां खत्म हो सकती हैं।
ऐसी एक कहानी है जिसमें कबीरदास ने कपड़ों की उपयोगिता के महत्व के बारे में बताया था, तो दोस्तों बात ऐसी है कि एक समय एक धनवान व्यक्ति कबीर की अमृतवाणी सुनने रोजाना आया करते थे वह प्रवचन ध्यान से सुनता और उनका चिंतन करता था।
उस व्यक्ति को यह जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि कबीर की वाणी में ऐसा क्या है जो लोग इन्हें इतना महत्व देते हैं और ऐसे ही एक दिन प्रवचन के दौरान उनकी नजर कबीर जी के कुर्ते पर पड़ी जो की बहुत ही साधारण था तो उसने सोचा कि क्यों ना कबीर दास जी को एक नया कुर्ता भेंट किया जाए।
इसके कुछ दिनों बाद उस धनी व्यक्ति नहीं कबीर दास जी को मखमल का एक कुर्ता भेंट किया और उस कुर्ते की विशेषता यह थी कि उसका बाहर का दिखने वाला कपड़ा मुलायम था और दूसरी तरफ साधारण खबर लगा हुआ था।
कबीर दास जी ने भी उस धनी व्यक्ति का उपहार स्वीकार कर लिया और अगले दिन जब प्रवचन शुरू हुए तो कभी दास जी ने वही कुर्ता पहना हुआ था लेकिन जब संत कबीर को उस धनी व्यक्ति ने वह कुर्ता पहने देखा तो वह चकित रह गया।
दरअसल हुआ यूं था कि कबीर दास जी ने उस कुर्ते को उल्टा पहना था यानी कि मखमल वाला हिस्स शरीर को छू रहा था और साधारण हिस्सा बाहर देख रहा था। इसके बाद जब प्रवचन समाप्त हुआ तो उस धनी व्यक्ति ने कविता से पूछा कि आपने यह क्यों किया है और कुर्ते को आपने उल्टा क्यों पहना है?
तब कबीर दास जी ने सभी के सामने बताया कि यह कुर्ता इन्हीं धनी व्यक्ति की रेट है और कुर्ता उल्टा पहनने पर बोले कपड़े शरीर की उपयोगिता के लिए होते हैं अपनी इज्जत को ढकने के लिए होते हैं दिखावे के लिए नहीं।
मलमल का भाग शरीर को स्पष्ट होना चाहिए था इसलिए इसे उल्टा पहना है दिखाने के लिए तो साधारण हिस्सा ही काफी है इससे वहां खड़े उस धनी व्यक्ति को और वहां खड़े सभी लोगों को यह बात समझ में आ गई कि कबीर जो बोलते हैं उसे अपने जीवन में उतारते भी हैं।
कबीरदास का व्यक्तित्व
हिंदी साहित्य के हजारों वर्षों के इतिहास में कबीर दास जी जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ होगा ऐसा व्यक्तित्व तुलसीदास जी का भी था परंतु तुलसीदास जी और कबीर दास जी में बड़ा अंतर रहा है यद्यपि दोनों ही भक्त थे परंतु दोनों स्वभाव, संस्कार, दृष्टिकोण में बिल्कुल अलग अलग थे मस्ती स्वभाव को झाड़ फटकार कर चल देने वाले कबीर ने पूरे हिंदी साहित्य को अद्भुत रूप दिया है।
उन्होंने अपनी रचना कबीर वाणी में अनन्य साधारण जीवन रस को भर दिया है और उनके इसी व्यक्तित्व के कारण ही कबीर की उक्तियां श्रोताओं को बलपूर्वक अपनी और आकर्षित करती है और इसी व्यक्तित्व के आकर्षण को सहृदय समालोचक संभाल नहीं पाता और कबीर को कवि कहने में संतोष पाता है ऐसे आकर्षक वक्ता को कभी ना कहा जाए तो और क्या कहा जाएगा।
कबीरदास का साहित्यिक परिचय
कबीरदास एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे इसीलिए लोगों ने संत कबीर दास के नाम से भी पुकारते थे उन्होंने अपनी कविताओं में पाखंडिओ के पाखंडवाद और धर्म के नाम पर हो और स्वार्थ पूर्ति की निजी दुकानदारों को ललकारा और असत्य अन्याय की पोल खोल कर रख दी है।
कबीरदास की भाषा, शैली
कबीरदास की भाषा शैली में उन्होंने अपनी बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया है भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था वह अपनी जिस बात को जिस रूप में प्रकट करना चाहते थे उसी रूप में प्रकट करने की क्षमता रखते थे।
भाषा भी मानव कबीर के सामने कुछ लाचार सी ही दिखाई देती थी उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि उनकी वह सफर माहिर को ना कह सके वाणी के ऐसे बादशाह को साहित्य रसिक काव्यांद का आस्वादन कराने वाला समझे तो उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता है।
कबीर ने जनता तुमको अपनी रचना से ध्वनित करना चाहा आपको उसके लिए कबीर की भाषा से ज्यादा साफ और जोरदार भाषा की संभावना भी नहीं की जा सकती है और इससे ज्यादा की जरूरत भी नहीं है।
कबीर दास का जीवन परिचय 100 शब्दों में (Kabir Das Biography In 100 Words)
1438 ईस्वी में जन्मे कबीरदास एक महान समाज सुधारक थे जो जगत गुरु रामानंद स्वामी जी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।
ऐसा कहा जाता है कि एक बार रामानंद गंगा स्नान के लिए सीढ़ियों से उतर रहे थे तभी अचानक उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया और उनके मुख से तत्काल राम शब्द निकल पड़ा और कबीर ने उसी शब्द को उनकी गुरु दीक्षा मान लिया और रामानंद जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।
उन्होंने अपने जीवन काल में मुख्य रूप से हिंदू और इस्लाम में प्रचलित धर्मों में अर्थहीन और गलत प्रथाओं की आलोचना की कबीरदास के अनुसार जो व्यक्ति हमेशा धार्मिकता के मार्ग पर चलता है जो किसी से इंसान नहीं करता है और सभी को समान रूप से प्यार करता है उसे हमेशा सर्वोच्च शक्ति का समर्थन प्राप्त होता है।
उन्होंने धर्म हुआ जातिवाद से ऊपर उठकर नीति की बातों को बताया जिसकी वजह से हिंदू और मुस्लिम धर्म के लोगों ने उनकी आलोचना की परंतु जब उनका देहांत हुआ तब हिंदू और मुस्लिम दोनों ने उन्हें अपने अपने धर्मों का संत माना।
कबीरदास भक्ति काल के कवि थे जो वैराग्य धारण करते हुए निराकार ब्रह्म की उपासना के उपदेश देते थे कबीर दास का समय कवि रहीम बुआ सूरदास के समय से पहले का है।
कबीरदास की रचनाएं (Kabir Das Creations)
- अगर मंगल
- अठपहरा
- अनुराग सागर
- अमर मूल
- अलिफ नामा
- अक्षर खंड की रमैनी
- अक्षर भेद की रमैनी
- आरती कबीर कृत
- उग्र गीता
- कबीर की वाणी
- कबीर आष्टक
- कबीर की साखी
- कबीर परिचय की साखी
- काया पंजी
- चौका पर की रमैनी
- चौतीसा कबीर का
- छप्पय कबीर का
- जन्म बोध
- निर्भय ज्ञान
- पुकार कबीर कृत
- बारामासी
- बीजक
- ब्रह्मा निरूपण
- मंगल बोध
- रमैनी
- राम रक्षा
- राम सागर
- रेख़ता
- विचार माला
- विवेक सागर
- शब्दावली
- हंस मुक्तावालों
- ज्ञान गुदड़ी
- ज्ञान चौतीसी
- ज्ञान सरोवर
- ज्ञान सागर
- ज्ञान संबोध
- ज्ञान स्तोश्र
- साखी
- सबद
- रमैनी
कबीर दास के दोहे (Kabir Das Dohe)
“कबीरा खड़ा बाजार में, लिए लखोटिया हाथ
जो घर फूंके आपनो, तो चले हमारे साथ”
“बुरा जो देखन मैं चला बुरा ना मिलया कोए
जो मन देखा आपनो, मुझसे बुरा ना कोई”
“निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय”
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए”
“चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोई”
“माटी कहे कुम्हार से तु क्या रौंदे मोह
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोदूंगी तोय”
“माली आवत देखकर कलियन करे पुकार
फूले फूले चुन लिए, काल हमारी बार”
“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब”
“साईं इतना दीजिए जामे कुटुंब समाय
मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए”
“निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय”
कबीर दास की मृत्यु, जयंती (Kabir Das Death, Death Place, Jyanti)
15वीं शताब्दी के एक सूफी कवि कबीरदास के बारे में माना जाता है कि उन्होंने अपनी मृत्यु का स्थान मगहर चुना था जो कि लखनऊ से लगभग 240 किलोमीटर दूर है।
उन्होंने ऐसा लोगों के दिमाग से परियों की कहानियों को दूर करने के लिए किया था उन दिनों यह माना जाता था कि जो भी काशी में अंतिम सांस लेता है वह स्वर्ग में जाता है और जो मगहर के क्षेत्र में मर जाता है उसे स्वर्ग में स्थान नहीं मिलता और अगले जन्म में गधे का जन्म लेगा।
लोगों को इसी अंधविश्वास को तोड़ने के लिए ही कबीर दास जी ने अपनी मृत्यु के लिए इस स्थान को चुना था और विक्रम संवत 1575 में हिंदू कैलेंडर के अनुसार उन्होंने 1518 ईस्वी में माल शुक्ल की एकादशी के दिन इस दुनिया को छोड़ कर पंचतत्व में विलीन हो गए।
इसके साथ ही दोस्तों हिंदू और मुस्लिम संप्रदाय के वह लोग जो उनके जीवनकाल में उनकी आलोचना करते थे वही उनकी मृत्यु के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर लड़ते रहे।
कबीर दास की शिक्षाएं सार्वभौमिक है और सभी के लिए सामान है क्योंकि उन्होंने मुसलमानों से को हिंदुओं और विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के बीच कभी भी कोई अंतर नहीं किया यही कारण है कि मगहर में कबीर दास की मजार और समाधि दोनों है।
कबीरदास से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण रोचक तथ्य-
- कबीर दास जी के जन्म के बारे में कोई भी प्रमाणिक साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं।
- उनका पालन पोषण नीरू और नीमा नाम के जुलाहे दंपति द्वारा किया गया है।
- उन्होंने अपने पूरे जीवन में धर्मों में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई है।
- वह एकेश्वरवाद को मानते थे और मूर्ति पूजा का विरोध करते थे।
- उन्हें अपने विचारों के कारण अपने जीवन में कई प्रकार की सामाजिक आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है।
- कवि संत स्वामी रामानंद को अपना गुरु मानते थे।
- उन्होंने अपनी कविताओं में ब्रज, भोजपुरी और अवधि सहित विभिन्न बोलियों का उपयोग किया है।
- उनके दोहो का उपयोग से के धार्मिक के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में भी किया गया है।
- शालोर्ट वुडविले के अनुसार कबीर और भक्ति आंदोलन के अन्य संतों का दर्शन निरपेक्षता की खोज है।
FAQ:
कबीरदास का जन्म कब और कहां हुआ?
कबीरदास का जन्म 1448 ईस्वी में माना जाता है।
कबीरदास किसकी भक्ति करते थे?
कबीर दास निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे और एकेश्वरवाद को मानते थे।
कबीरदास के गुरु कौन हैं?
कबीर दास के जीवन के एकमात्र गुरु रामानंद स्वामी हैं।
कबीर दास की मृत्यु कब और कहां हुई?
कबीर दास जी ने 1518 ईस्वी में काशी के निकट मगहर स्थान पर अपने प्राण त्याग दिए थे.
कबीर दास की प्रमुख रचनाएं कौन है?
कबीर दास की प्रमुख रचनाओं में बीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर आदि आते हैं।
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